ऐसा क्यों होता है? वो आस पास है,
फिर भी बहुत याद आता है।
ऐसा क्यों होता है? बात होती है, फिर भी
खामोशी में कुछ दबा रहता है।
ऐसा क्यों होता है? हर पल कुछ अधूरा सा
लगता है।
ऐसा क्यों होता है? उसके रंग हमारे लिए नहीं है,
ये एहसास घेर जाता है।
ऐसा क्यों होता है? ये प्यार सही ग़लत के दायरों में क्यों बंध जाता है?
मुस्कुराहट, दो शब्द, कुछ पल और उसकी नज़रे इनायत,
कुछ ज्यादा तो नहीं मांग रहे, फिर भी ऐसा क्यों होता है,
सूफी सा ये प्यार कुछ मांगता नहीं, जिससे भी होता है ये उसे बांधता नहीं,
फिर भी ऐसा क्यों होता है?
ऐसे प्यार को समझना इतना मुशकिल क्यों होता है?
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