दिल के बंद दरवाज़े किर किरा कर खुले,
जिंदगी की तंग राहों पर कुछ फूल खिले,
इश्क, प्यार और मोहब्बत की बातें हम करने लगे,
कुछ साथ ऐसे मिले, जो नई उमंग जगा गए।
अजनबी शहर, नए अंदाज़, कुछ भीगे अलफाज़
सुनसान राहों में वो गाने गुनगुनाने की आवाज़,
कभी बारिश, कभी सुहानी हवा का चहरे पर वो एहसास,
रास्ते में कभी ढेरों बातें, तो कभी बस सवाल एक आद,
वो शहर घूमने घूमाने का जवां सा अंदाज़,
बेतकलुफी से पार कर गया दिल के दरों दीवार।
मैं सोचती थी, मुझमें जो इशक है उससे दिल-ए-ज़ार न होगा,
प्यार जो ज़हन की गलियों में खोया है उसपर गौर न होगा,
लेकिन, जिंदगी की डोर हमारे हाथ में नहीं,
इस सफर की भोर हमारे हाथ में नहीं,
तो अब कोई इश्तियाक, कोई इलतजा नहीं,
इस खूबसूरत सफर को किसी मंजिल की चाह नहीं ।
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