Thursday, May 18, 2023

गुरुओं का बोल बाला

चेहरों पर चेहरे हैं, शायद इसलिए ये लोग बड़े ही गहरे हैं, 
परतों में जीते हैं, जुमलों में कहते हैं, 
क्या कह जाते हैं, शायद खुद भी नहीं समझ पाते हैं, 

उसकी खोज में निकलो, ये ज्ञान तो वो देते हैं, 
लेकिन खुद भीड़ में गुम हो जाते हैं। 
इसी भीड़ को बहकाते हैं, भड़काते हैं, 
फिर भीड़ को गाने भी सुनाते हैं, 
अपना सारा confusion भीड़ में फैलाते हैं, 
चेहरे पर चेहरे हैं, शायद इसलिए ये लोग बड़े ही गहरे हैं.

आंखों की काली पट्टी का धंधा है इनका,
गुम हुए इनसानों को कुएं में धकेलते जाते हैं, 
अपनी कला को उसकी लीला से ज्यादा मान बैठे हैं, 
मंच पर चढ़े रहते हैं, कुविचारों पर अड़े रहते हैं, 
भ्रम फैला रहे हैं, खुद को गुरू मनवा रहे हैं, 
अपनी पूजा भी करवा रहे हैं, 
परतों में जीते हैं, जुमलों में कहते हैं, 
चेहरों पर चेहरे हैं, इसलिए ये लोग बड़े ही गहरे हैं. 

सही गलत की परिभाषा देते हैं, 
अच्छे बुरे का भेद बताते हैं, 
खुद में लेकिन झांकना भूल जाते हैं, 
कोई सिद्धि नहीं है, लेकिन प्रसिद्धि चाहते हैं, 
लोगों के डर पर अपना हर पासा खेल जाते हैं, 
ज्ञानी अज्ञानी सब इनके बहकावे में आते हैं, 
इसी बल को ये अपना आधार बनाते हैं, 
चेहरों पर चेहरे हैं इनके, इनकी गहराई भी मिथ्या है, 
जागो इनको सुनने वालों, इनका नाम न बांचो तुम, 
अपने अंतर को पहचानों, इनका राग न आलापो तुम. 







Thursday, September 15, 2022

मिट्टी में मिल जाना है

जमीन, घर, मकान,   
कैसे कैसे ख्वाब देखता है इनसान, 
कभी खुली आंखों से और कभी मन में है संजोता, 
लड़ते, मरते, खुद को छलते, चाहतों की लिस्ट बढ़ाती जाती है,
लेकिन

क्या लेकर आए थे, कुछ नहीं, फिर भी हर चीज़ अपनी बनाना चाहते हैं हम,  
कभी अधिकार, कभी हक, कभी इच्छा से, संसार का हर सुख है चाहते हम

क्या लेकर जाएंगे? जानते हैं, कि साथ कुछ नहीं जाएगा, 
फिर भी इतना कुछ क्यों बनाना चाहते हैं हम, 
किसके लिए ये व्यवस्था है करनी, 
कौन बसेगा इसमें, यादें भी तो इंसानों के साथ ही खत्म होती जाती हैं, 
हर नई पीढ़ी अपना नया आज लिखती है, 

ये कैसा लोभ, क्या प्रयास है, हर चीज़ से ये कैसा जुड़ाव है? 
जहां का अन्न लिखा है, वहीं तेरा ठिकाना है, 
उसी धरती को अपनी कर्म भूमी बनाना है,  
दिल में करुणा लिए सिर्फ इंसानियत का धर्म निभाना है, 
जानता है ना तू ऐ बंदे, अगले पल का न कोई ठिकाना है. 
बस मिट्टी में मिल जाना है, बस मिट्टि में मिल जाना है.   


 


Monday, July 4, 2022

खोज

जब खुद से विश्वास उठता है,  
हर आंख सवाल सी लगती है, 
हर इंसान तीर सा दिखता है, 
मन बौरा सा जाता है, 
जब खुद पर शक हो जाता है. 
 
अंधेरी सी इक गली में परछाई से हो गए थे हम,
रौशनी की चाह में अब घुट रहा था दम, 
जिंदगी तो चल रही थी पर हम वहीं खड़े थे, 
हाथों में ख्वाबों का पोटला था, 
लेकिन रास्ते सब गुम गए थे. 

दिमाग ने अब मकसद की खोज मचाई है, 
जीवन में क्यों, क्या, कैसे की पुकार लगाई है, 
ये खोज नए रास्तों पर ले जाएगी. 
खुद से खुद का परिचय कराएगी। 

हर सच्चाई के लिए तैयार हुं अब, 
अपनी बुराई के लिए तैयार हुं अब, 
खुद को अब वापस पाना है 
सिर्फ सवालों के जवाब नहीं,
अब मंजिल पर निशाना है। 
 
किसी एक ख्वाब को तराशना होगा, 
किसी एक सुगंध में रमना होगा,  
लोगों की परवाह नहीं अब, 
अपने बच्चे का विश्वास बनना होगी,  
संतुष्टि की राह पर है चलना, 
न अपने से न किसी और से है लड़ना, 
खुद की खोज है ये, अब खुद में है खोना. 


Monday, December 6, 2021

दो चहरे


जिंदगी में हर पल कुछ छूट रहा है, 
कुछ हिस्सों में दिल रोज़ टूट रहा है, 
कैसा अजीब शहर है ये, 
यहां हर कोई दो चेहरे लेकर घूम रहा है। 

दिखावे कि इज्ज़त, दिखावे कि दोस्ती, 
झूठा सा लग रहा है हर नया रिश्ता, 
यहां आम है बेवफाई का किस्सा, 
हर पल नए रंग दिखा रहा है जिंदगी का ये हिस्सा। 

रिश्तों की टोह लो तो लगता है पता, 
सत्ता का है खेल कहीं, 
तो कहीं नाम की है इच्छा, 
उम्र छोटी हो, चाहे अनुभव नया,
हर शक्स यहां बस खुद में है रमा।

यहां जिंदगी भाग नहीं रही, 
पर होड़ यहां भी है, 
बेफिक्री कि, दिखावे कि, पैसे कि होड़ 
शायद इसलिए दिखते नहीं लेकिन 
बेहद रूखे हैं यहां के लोग।  

दुनिया ये काफी अलग है, 
पता नहीं सही है या गलत है, 
आंखें यहां बार बार भर आती हैं, 
कभी दुख तो कभी अफसोस से भीग जाती हैं। 

सुलझाने चले थे जिस जिंदगी को
उसे नए मोड़ पर खड़ा पाया है, 
नए लोगों ने नए सवाल दिए हैं  
राह की तलाश में, खुद को और गुम पाए है, 
लगता है अब यही रास्ता मंजिल तक हमसाया है। 


Sunday, September 26, 2021

तू क्या है?

हर बात से पहले सोच कि तू क्या है,

हर ख्वाब से पहले सोच कि तू क्या है, 

अहल-ए-जहां में कई दावेदार आए गए, 

हर गुजारिश से पहले सोच कि तू क्या है।


लम्हें में गुम होना आसान है, 

खुद से रूठना भी मुमकिन है, 

लेकिन क्या खुद को पहचानने के लिए तू परेशान है? 

हर कदम से पहले सोच कि तू क्या है, 

हर कथन से पहले सोच कि तू क्या है।


ये जिंदगी मौके कई देगी तुझको, 
इन मौकों को भुना और सोच कि तू क्या है,
खुद को रोज दे नई चुनौतियां, 
हर चुनौती को पार कर सोच कि तू क्या है, 

न होना बदगुमान, खुद से रहना तू बहम, 
ऐसा कर मन कि उसमें रह न पाए कोई ग़म, 
हर पल में जान तू जीने का दम, 
जिसे हो ज़रूरत उसे लगा मरहम, 
फिर होकर खुद में गुम, सोच कि तू क्या है। 

हर दिन की सहर में सोच कि तू क्या है, 
हर शाम की शब में सोच कि तू क्या है, 
जोश से आगे बढ़ता चल और सोच कि तू क्या है, 
जिंदगानी के हर पल में सोच कि तू क्या है, 
बस रहमत है उस खुदा कि वरना तू क्या है।

Monday, September 6, 2021

तलाश

हर लहर को तलाश है किनारे की, 
हर नदी तलाश रही है अपना समंदर, 
हर दीवाने को तलाश है एक दिल की, 
तलाश में जो बेचैनी है न, 
उसको भी तलाश है, तलाश खत्म होने की,
किसी न किसी तलाश में सभी गुम हैं, 
सफर भी, मुकाम भी, इंतजार भी, मंजिल भी,  

हर किसी को तलाश है,  
खुशी की, साथ की, प्यार की,  
किसी को तारुफ़ की है तलाश,   
तो कोई तकदीर की तस्वीर में खुद को रहा तलाश। 

तमन्नाओं और ख्वाबों का हिस्सा बन्ना चाहता है कोई, 
तो किसी की ख्वाहिश है, तारीखों में तलाशा जाए,  
बस हो कुछ यूं कि हर तलाश जिंदगी के और करीब लाए, 
हर तलाश के बाद हम खुद को ज्यादा जान पाएं। 


  


Friday, August 13, 2021

आज़ादी


देश तो आज़ाद है मेरा..
लेकिन क्या होती है आज़ादी? 
क्या आज़ाद है देश का नौजवां?  
क्या आज़ाद है देश की बेटियां? 
क्या आज़ाद हैं हमारे सोच विचार? 
सोचिए तो ऐ- जनाब आखिर कितना आज़ाद 
है हिन्दोस्तान? 

संविधान पर अपने गर्व है मुझको, 
लेकिन क्या वाकई है "धर्म" की आज़ादी?  
कानून तो सारे हैं यहां, 
लेकिन क्या है बोलने की आज़ादी,  
हक मुझे हैं सब यहां, 
पर क्या मिल पाई है जात से आज़ादी? 
देश तो आज़ाद है मेरा, 
लेकिन कहां है असली आज़ादी?

स्कूल तो गली गली में हैं, 
लेकिन क्या सबको मिल रही है,  
पढ़ने की आज़ादी?
भुखमरी से आज़ाद नहीं हम, 
न है ग़रीबी से आज़ादी, 
सोच में जकड़ी आज़ादी, 
न्याय में जकड़ी आज़ादी,
बल में जकड़ी आज़ादी,  
देश तो आज़ाद है मेरा, 
लेकिन क्या है असली आज़ादी? 

कभी संस्कारों, कभी रिवाजों, 
कभी रिवायतों की भेंट चढ़ती है आज़ादी, 
कहीं बंधनों, कहीं जिम्मेदारियों के दायरों
में सिमटती रही है आज़ादी, 
कभी सोच, कभी ग़म, कभी प्यार में भी 
बंध रही है आज़ादी, 
देश तो आज़ाद है मेरा, 
लेकिन क्या होती है आज़ादी?