Saturday, March 30, 2019

इच्छा

भंवरे ने चाहा दिस तरह की वो हर फूल का रस पीए
अपनी भी इच्छा यही की अब जिंदगी खुल कर जिएं
जिस तरह है कली खिलती, उस तरह खिल जाएं हम,
अभिलाषा और आशाओं से जलाएं फिर सैंकड़ों दिए।

सुबह की हर किरण सफलता बन फूटे
आस का साथ अब कभी न छूटे
मुश्किलों का हाथ थाम, आओ किनारे तक छोड़ आएं
किंशुका को गुलाब बनाकर अब हम बटोर लाएं

भय नहीं अब विश्वास हो,
ज्ञान का हर पर साथ हो,
इंद्रधनुशी पगडंडी भले ही न मिले,
पर आओ जिंदगी खुल कर जिएं

सड़क

काली सी इस सड़क के इस पार अंधेरा है,
तो उस तरफ है रौशनी
भुखमरी है इस तरफ
तो उस तरफ है जिंदगी खड़ी
इस तरफ है केवल प्यास,
उस तरफ हर्ष और उल्लाहस
यहां गरीबी से हताश मौत भी है रो रही
वहां अमीरी के शोर गुल में जिंदगी कहीं खो गई
किसी को मिला है धरती पर नर्क
कोई समझता है, सर्वग पर है केवल उसका हक
काली सी इस सड़क पर रोज ये चलेंगे, पर
सड़क के ये दो तरफ शायद कभी नहीं मिलेंगे

Friday, March 29, 2019

लमहे!

लमहा लमहा ज़िन्दगी कट रही है 
घटनाएं कुछ ऐसी घट रही हैं 
पल में  राजा पल में रंक 
किसे पता कब किसका हो अंत 
झगड़े रोज़ हो रहे हैं ,
रात दिन  सब रो रहे हैं ,

मासूम है ये ज़िन्दगी, क्यों छिन गई इसकी हंसी , 
किसे पता ये क्यों हुआ,
किसने किया, इसने किया या उसने किया,
देश का रंग यूं भंग हुआ,

नफरत की इमारतों पर झंडे गढ़ रहे हैं,
प्यार चीख चीख कर अपने होने का एहसास दिला रहा है,
सूबह की हवा में अजीब सी मायूसी है
शाम तक ये हो जाती बदहवासी है,

अब, खुद से पूछना जरूरी है ये सवाल,
ये क्यूं हो रहा है, इनसान इंसानियत को खो रहा है
लेकिन फिर भी, सब ज्यों का त्यों हो रहा है। 
लमहा लमहा ज़िन्दगी काट रही है , 
घटनाएं यूं घट रही हैं, हर पल नए सवाल खड़े कर रही हैं।