भंवरे ने चाहा दिस तरह की वो हर फूल का रस पीए
अपनी भी इच्छा यही की अब जिंदगी खुल कर जिएं
जिस तरह है कली खिलती, उस तरह खिल जाएं हम,
अभिलाषा और आशाओं से जलाएं फिर सैंकड़ों दिए।
सुबह की हर किरण सफलता बन फूटे
आस का साथ अब कभी न छूटे
मुश्किलों का हाथ थाम, आओ किनारे तक छोड़ आएं
किंशुका को गुलाब बनाकर अब हम बटोर लाएं
भय नहीं अब विश्वास हो,
ज्ञान का हर पर साथ हो,
इंद्रधनुशी पगडंडी भले ही न मिले,
पर आओ जिंदगी खुल कर जिएं
अपनी भी इच्छा यही की अब जिंदगी खुल कर जिएं
जिस तरह है कली खिलती, उस तरह खिल जाएं हम,
अभिलाषा और आशाओं से जलाएं फिर सैंकड़ों दिए।
सुबह की हर किरण सफलता बन फूटे
आस का साथ अब कभी न छूटे
मुश्किलों का हाथ थाम, आओ किनारे तक छोड़ आएं
किंशुका को गुलाब बनाकर अब हम बटोर लाएं
भय नहीं अब विश्वास हो,
ज्ञान का हर पर साथ हो,
इंद्रधनुशी पगडंडी भले ही न मिले,
पर आओ जिंदगी खुल कर जिएं