न भीड़ है, न शोर है
न कहीं भागने की होड़ है
सो गईं हैं सड़कें, हर मंजर ठहर गया है
इस हर पल जागते शहर का हर रास्ता सो गया है
एक दूसरे से बढ़े फासले, की खुद से अब करीब आएं
जिंदगी की इस रेस में जरा सोचें और थोड़ा ठहर जाएं,
बाहर कि दुनिया ढक गई है, ताकी अपनी दुनिया देख पाएं ,
प्रकृति से भी दूर हुए ताकी उसको अब न सताएं,
चिड़ियों की चहचहाट सुनें और कौए की काएं काएं,
उनमुक्त गगन में उनके बेखोफ उड़ने का, बस लुत्फ उठाएं,
हर किसी को है अब अंदर बंद होना, आलीशान बंगाला हो
या झुग्गी का कोई कोना, इस वक्त बस जरूरी है किसमत का साथ होना,
खुद साथ बैठो अपने, थोड़ा परिवार का साथ दो,
जिंदगी के इन लमहों को यूंही न गुजार दो,
राबता करो मन की गहरी गलियों से, नामुमकिन है यहां किसी का खोना,
क्या चाहती है जिंगदी हमसे इसपर भी गौर फरमाएं,
इस भीड़ में भी आज क्यों हैं तन्हा इसकी वजह तो खोज लाएं,
जो इस वक्त घट रहा है, वो कोई मोजिज़ा ही है,
न कहीं भागने की होड़ है
सो गईं हैं सड़कें, हर मंजर ठहर गया है
इस हर पल जागते शहर का हर रास्ता सो गया है
एक दूसरे से बढ़े फासले, की खुद से अब करीब आएं
जिंदगी की इस रेस में जरा सोचें और थोड़ा ठहर जाएं,
बाहर कि दुनिया ढक गई है, ताकी अपनी दुनिया देख पाएं ,
प्रकृति से भी दूर हुए ताकी उसको अब न सताएं,
चिड़ियों की चहचहाट सुनें और कौए की काएं काएं,
उनमुक्त गगन में उनके बेखोफ उड़ने का, बस लुत्फ उठाएं,
हर किसी को है अब अंदर बंद होना, आलीशान बंगाला हो
या झुग्गी का कोई कोना, इस वक्त बस जरूरी है किसमत का साथ होना,
खुद साथ बैठो अपने, थोड़ा परिवार का साथ दो,
जिंदगी के इन लमहों को यूंही न गुजार दो,
राबता करो मन की गहरी गलियों से, नामुमकिन है यहां किसी का खोना,
क्या चाहती है जिंगदी हमसे इसपर भी गौर फरमाएं,
इस भीड़ में भी आज क्यों हैं तन्हा इसकी वजह तो खोज लाएं,
जो इस वक्त घट रहा है, वो कोई मोजिज़ा ही है,
खुद के अंदर की आवाज़, अब कानों तक पहुंच रही है,
खुद की तलाश, अब नज़र तक पहुंच रही है,
दूर दूर तक पसरे इस संनाटे में भी सूकून की गुंजाइश है,
न भीड़ है, न शोर है, एक अजीब सी शांती चारो ओर है।