Saturday, December 7, 2019

हो न सका !

सेवा, समानता, सच्चाई, सबदा रब इक ही है, यही बात सिखाई। एक महात्मा वो थे जिन्होंने अहंकार, लालच और हवस के रावण को मार कर ही जिंदगी, जिंदगी बनेगी, ये बात बताई।  

आज़ादी की जिद थी, और चहरे पर मुस्कान, एक महात्मा वो थे, जिन्होंने दिया non violence का ज्ञान। सादा सा जीवन, एकता और प्यार, किसी पर न हो अत्याचार यही था उनके जीवन का सार। 

एक महात्मा वो थे जिन्होंने छोड़ा सब राज पाठ। खुद को पहचानने पर दिया जोर, जिंदगी का मकसद क्या है, ये जानने में हुए सराबोर।

महात्मा तो कई हुए देश में, कई ऐसे जो अपना देश छोड़ यहां बसे, बस सेवा की और चल बसे।
लेकिन माशरे ने हर पल निराश किया, कुछ को सीख मिली, कुछ ने कोशिश की, पर हो न सका। 

हो न सका और अब ये आलम है की न होश है, न सही राह, न तमीज़ बची, न सच्चाई,  
पैसे और हवस के जंगल में ऐसा खोया है इंसा, बची कुची समझ भी है गवांई,

जो पिस रहे हैं उनमें रोष है, जो दब रहे हैं उनमें आक्रोश है, 
आवाज़ें उठती हैं, उम्मीद जगती है, लेकिन फिर एक विवश्ता अंदर से तोड़ती है। 

वो बदलाव जो इंसान को इंसान बनाए, हो न सका, हर बार चीखों ने अंदर तक कचोटती हैं, 
लेकिन माहोल ऐसा है, की कुछ हो न सका। 

इंसाफ की बात हो, एकता या समानता की, माशरे के बदलने की, या बात हो इंसानियत के आगे बढ़ने की, कुछ भी सचमुच हो न सका।