जब खुद से विश्वास उठता है,
हर आंख सवाल सी लगती है,
हर इंसान तीर सा दिखता है,
मन बौरा सा जाता है,
जब खुद पर शक हो जाता है.
अंधेरी सी इक गली में परछाई से हो गए हम,
रौशनी की चाह में अब घुट रहा है दम,
जिंदगी तो चल रही है पर हम वहीं खड़े हैं,
हाथों में ख्वाबों का पोटला ज़रूर है,
लेकिन रास्ते सब गुम गए हैं।
दिमाग ने अब मकसद की खोज मचाई है,
जीवन में क्यों, क्या, कैसे की पुकार लगाई है,
ये खोज नए रास्तों पर ले जाएगी.
खुद से खुद का परिचय कराएगी।
हर सच्चाई के लिए तैयार हैं हम,
अपनी बुराई के लिए तैयार हैं हम,
खुद को अब वापस पाना है
सिर्फ सवालों के जवाब नहीं,
अब मंजिल पर निशाना है।
किसी एक ख्वाब को तराशना होगा,
किसी एक सुगंध में रमना है,
लोगों की परवाह नहीं अब,
अपने बच्चे का विश्वास बनना है,
संतुष्टि की है राह पे चलना,
अपने से न किसी और से है लड़ना,
बस खुद को खोज के अब अपनों में है जीना.