कैसा शहर है ये ?
ना सोता है, न थकता है !
सूबह के 6 बजे भी गाड़ी से गाड़ी सट कर चलती है
रात 12 बजे भी कारों और ट्रकों की भीड़ सड़क पर होती है।
जिंदगी यूं सड़क पर घंटे धव्सत कर रही है,
सांसे मानो जीने को झगड़ रही हैं,
रोज यहां आदमी खर्च हो रहा है।
रुह सागर की मटमैली लरहों में खुद को डुबो रही है।
लोगों के हुजूम में भी यहां दिल घबराता है,
भीड़ में भी मन अक्सर खुद को अकेला पाता है।
कैसा शहर है ?
ये न सोता है, न थकता है!
सीमेंट की राहें यहां आग उगलती हैं,
AC की नकली हवा गला सुखाती है।
उंची उंची इमारतों में कैद है इंसान
धरती और हक्कीत से बिलकुल परे।
कैसा शहर है ये ?
कहीं जिंदगी धक्के खा रही है,
कहीं सजी संवरी लहरा रही है,
दोनो ही अपना अपना सच छुपा रहे हैं,
बस धकापेल में चले जा रहा हैं।
कैसा शहर है ये ?
कैसा शहर है ये ?