ज़िन्दगी के रास्ते में एक एहसास मिला,
एहसास जो बेहद अपना सा लगा,
इसे अपना ले ये मन ने कहा,
बिना किसी बंधन में न बांधे,
वो एहसास पल पल में उतरने लगा।
पाकीज़ा सी दोस्ती का एहसास,
बचपन की मासूमियत है इसमें,
जवानी का अल्हड़पन,
जूनून नहीं कोई, एक शांत सा समंदर,
इसे कोई नाम कैसे दे दूं,
इसे किसी सोच से कैसे बांध दूं,
एक एहसास है ये, डूबने के लिए खास है ये,
इस एहसास से जब राब्ता हुआ,
खुद पर फिर से यकीन हुआ,
नहीं जानती ये क्यों हुआ,
सही हुआ या गलत हुआ,
अब जो हुआ सो हुआ।
देख कर उसे आंखों को सूकून मिलता है,
कुछ उसकी सुनने, कुछ अपनी कहने का जी करता है,
कभी बस साथ गुनगुनाने का जी करता है,
सब कुछ भूल जाने का जी करता है,
जब मुलाकात हुई तो कुछ देर तक माना नहीं था,
लेकिन इस एहसास ने जिंदगी को ऐसे छुआ,
धड़कने का एहसास फिर दिल को हुआ।
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