Saturday, August 3, 2019

मन

रूई के फाहों सा उड़ता ये मन,
ठंडी हवा के झोंकों से छिड़ता ये मन,
सुरज की लाली सा जगमगाता ये मन,
मन नहीं मानो राग है कोई,
धरती के सुरों से अनुराग है कोई,
चंचल है, बेचैन नहीं, समय के सितम पर मुस्कुराता ये मन,
कभी किसी की चाह में मदहोश ये मन,
फिर जिंदगी की राह में बेहोश ये मन,
कभी रास्ते से भटकाता है, ये मन,
कभी मंजिलों तक पहुंचाता है, ये मन,
आशाओं के मोतियों को छुपाए, चुप चाप बैठा ये मन,
हर रात को नए ख्वाबों से सजाए ये मन,
हर सुबह की रंगत में इतराए ये मन,
इसे काबू में रखने को कहती है दुनिया,
दुनिया की इस सलाह को ठुकराए ये मन!


No comments:

Post a Comment