ये किस तरह की हवा चल रही है?
रास्ते दिखते तो हैं मगर धुंधले से हैं,
बातों में कभी कभी जोश तो है,
मगर होश अक्सर बेहोश है,
मुठ्ठी से फिसलती रेत सा समय,
तकरीरों में उलझता जा रहा है,
खाली पड़े सपनों से झगड़ता जा रहा है।
ज़िन्दगी यूं आखों के आगे से गुज़र रही है,
ये किस तरह की हवा चल रही है।
शांती है बाहर, मगर मन अशांत सा है,
डर नहीं है, इसमें कुछ वीरान सा है,
सर जमीन पर जैसे एक तूफान सा है,
जिससे बच्चा बच्चा परेशान सा है,
कुछ इस तरह की हवा चल रही है,
ज़िन्दगी नम आखों में गुज़र रही है।
मौसम बदल रहे हैं,
हल्की भीनी सर्दी ने, गर्मी को कुछ जगह दी,
फिर बहार भी आ कर चली गई,
सूरज ने भी तेज दिखाया,
समुद्र का सुकूत भी थम न पाया
हम घर में यूं ही बंद रहे,
बाहर एक तूफान आया,
धुंधली सी ये ज़िन्दगी, आखों के आगे से गुज़र रही है,
न जाने ये कैसी हवा चल रही है।
तूफान, बाड़, भूकंप, बिमारी, भुकमरी,
न जाने ये समय और क्या क्या दिखाएगा
कितने गुनाहों की सज़ा साथ दिलाएगा
धरती टूट रही है, आशाएं छूट रही हैं,
इंसान का इंसान पर कच्चा सा एक भरोसा है,
बस इसी के सहारे उम्मीदों को रोका है।
वरना तो, हवा कुछ ऐसी चल रही है,
ज़िन्दगी आखों के आगे से बस गुज़र रही है।
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