Wednesday, March 11, 2020

जीवन!

हम क्यों जी रहे हैं,
जीवन जीने की आशा लिए,
शायद कभी हालात सुधरें,
शांती का राज हो, सत्य बलवान हो

क्या ऐसा होगा?
यही प्रशन बार बार आता है,
लड़ाई, खींचतान, युध और मज़हब के नाम से
अब दिल घबराता है।

हम क्यों जी रहे हैं?
शांती की खोज में, या कामनाओं के लिए,
इच्छाओं की ओड़ में या धरती के लिए, 
कुछ कह नहीं सकते, हर पल एक बैचैनी है,
इस रात की सियाही गहरी है,
कैसा अज्ञात सा जीवन है, फिर भी जी रहे हैं।



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