भीड़ में खड़े खड़े खुद में मगन, जब कोई अचानक से जागता है,
बड़ा मजा आता है, जब इनसान फोन से बाहर आता है,
अपनी मंजिल को खोजती उसकी आखें,
खुद से सवाल करती उसकी आखें,
नजारा जहां तक देख पाता है, खुद को गलत राह पर पाता है।
अब भाग कर क्या मिलेगा,
अब हांफ कर क्या मिलेगा,
फिर भी, वो एक दौड़ लगाता है,
जब भीड़ में खुद को तनहा पाता है।
सफर के दौरना तो कई लोग सो जाते हैं,
कमाल तो वो हैं, जो बीच सफर में, खुली आंख से खो जाते हैं,
बड़ा मजा आता है, जब इंसान फोन से बाहर आता है,
आसपास की भीड़ को देख चौंक जाता है,
बेसुध चलते चलते होश में आता है,
मंजिल की ओर नजर डाल, दो कदम आगे, तो दो कदम पीछे लेता है
सामने से निकलती गाड़ी को देख मायूस भी होता है,
फिर एक बार गरदन उठा आसमान की ओर देखता है,
अगली गाड़ी जूं ही आती है, उसके चहरे से शिकन हट जाती है।
गुमसुम राहगीर हो, या अपने में गुम खुशनुमा कोई,
रास्ते की नवज़ को वही पकड़ पाता है,
जो जोश में होश के साथ आगे बढ़ जाता है।
No comments:
Post a Comment