Sunday, February 25, 2024

आज

अक्सर यूं लगता है, वो बचपन के रिश्ते अच्छे थे, 
वो दोस्त, वो भाई बहन तब सब सच्चे थे, 
मासूमियत थी, जिगरी यारियां थी, हर वक्त मस्ती की तैयारियां थीं। 
खुले आसमान के नीचे सिनेमा का मजा, 
घास पर लेट तारामंडलों को खोजना, 
पैसे नहीं थे, डर भी नहीं था, फलों के पेड़ों पर हम थे और कच्ची पक्की डालियां थीं। 
हर काम को अंजाम तक पहुंचाने की मुहिम थी, 
ऊंच-नीच, धर्म, परम्पराओं सबसे परे ज़िंदगी रोज नई राहों से गुजर रही थी। 
इच्छाएं भी छोटी थीं, छोटी छोटी ही खुशियां थीं। 

फिर हम सब बड़े हो गए, फासले बढ़े और रास्ते अलग हो गए, 
कुछ के तेवर बदले तो हमने उन्हें छोड़ दिया, कुछ दिल के प्यारे थे फिर भी हमसे छूट गए। 
कुछ तो, नए रास्तों में कुछ दूर तक दिखे फिर वो भी सफर के बादलों में खो गए। 
सबकी अपनी ज़िंदगी बनी, सबको नए रिश्ते मिले, 
एक नए आज में सब महफूज़ हो गए। 

आज मुट्ठी हमने खोली तो हथेली में चिपकी रेत सी बस चंद यादें मिलिं, 
वो यादें जो नम आंखों की मुस्कुराहट बन गईं, 
इस जीवन में हर पल कुछ नया आना और पुराना जाना है। 
अगले पल का किसे पता है, हम सबको बस अपना आज निभाना है। 

  


No comments:

Post a Comment